कोरोना वाइरस पर शायरी | Covid-19 Shayari
लॉकडॉन शायरी हिंदी में | Lockdown Poetry In Hindi
आदमी आदमी से डरने लगा
आजकल दूर से गुजरने लगा
मौत जब आएगी तब आएगी
अब बिना मौत के मरने लगा
ख़ौफ का छाया है ऐसा मंजर
अपने साये से खुद डरने लगा
नहीं होता है वो दुःख में शरीक़
जनाजा अकेले निकलने लगा
आजकल दूर से गुजरने लगा
मौत जब आएगी तब आएगी
अब बिना मौत के मरने लगा
ख़ौफ का छाया है ऐसा मंजर
अपने साये से खुद डरने लगा
नहीं होता है वो दुःख में शरीक़
जनाजा अकेले निकलने लगा
Covid-19 Shayari
भीड़ की तस्वीरें भी डराती हैं
अब अकेले ही दम घुटने लगा
किसी के हालचाल क्या पूछना
खुद सलामत रहें ये लगने लगा
जरा देखो गली में कौन रोता है
कोई दुनिया से कूच करने लगा
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर
अब अकेले ही दम घुटने लगा
किसी के हालचाल क्या पूछना
खुद सलामत रहें ये लगने लगा
जरा देखो गली में कौन रोता है
कोई दुनिया से कूच करने लगा
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर
दूकानों में पड़ गए ताले कोरोना वायरस शायरी
दूकानों में पड़ गए ताले
ओठों से छिन गए निवाले
ए मालिक अब तू ही बता
जियेंगे कैसे मेहनत वाले
खोमचे वाले रिक्शे वाले
चाय पान का ठेला वाले
मीठी मीठी मिठाई वाले
टोकरी वाले चटाई वाले
चटपट चटपट चाट वाले
पंचर वाले साइकिल वाले
परचून वाले टपरे वाले
तांगे वाले हजामत वाले
चप्पल जूता सिलने वाले
मजे कर रहे महलों वाले
है आँसू बहाते सड़कों वाले
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर
ओठों से छिन गए निवाले
ए मालिक अब तू ही बता
जियेंगे कैसे मेहनत वाले
खोमचे वाले रिक्शे वाले
चाय पान का ठेला वाले
मीठी मीठी मिठाई वाले
टोकरी वाले चटाई वाले
चटपट चटपट चाट वाले
पंचर वाले साइकिल वाले
परचून वाले टपरे वाले
तांगे वाले हजामत वाले
चप्पल जूता सिलने वाले
मजे कर रहे महलों वाले
है आँसू बहाते सड़कों वाले
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर
कोरोना का कहर, कोरोना वाइरस शायरी
कोरोना का कहर इस ऊफान पर है कि,
मनहूस खबर मिल रहा है चहुँओर से।
कुछ खबरे सदमें पहुँचाने हेतु काफी है ,
कुछ खबरो से नयन भर जाते लोर से।।
कुछ खबरो से नयन भर जाते लोर से,क्योंकि छीने जाते है जब अपने।
गाढी नींद में भी खलल पड़ जाता,दिखने लगते जब बुरे बुरे सपने।।
खूँटातोड़, चूक कहाँ से हो गयी इतनी जो,
आज पाला पड़ रहा है ऐसे दहशत से।
उदर निर्वहन उसी से करना पङता ,जो मिल जाता है निज के किस्मत से।।
मन की बात कहने को अब सरकार भी आती नही दूरदर्शन पर,
जो व्यस्त है चुनावी रैली में।
हर पल का माजरा याद रखना मतदातागणो,
अगली बार हिसाब कर लेना इन्ही सब की शैली में।।
कविः खूँटातोड़
मनहूस खबर मिल रहा है चहुँओर से।
कुछ खबरे सदमें पहुँचाने हेतु काफी है ,
कुछ खबरो से नयन भर जाते लोर से।।
कुछ खबरो से नयन भर जाते लोर से,क्योंकि छीने जाते है जब अपने।
गाढी नींद में भी खलल पड़ जाता,दिखने लगते जब बुरे बुरे सपने।।
खूँटातोड़, चूक कहाँ से हो गयी इतनी जो,
आज पाला पड़ रहा है ऐसे दहशत से।
उदर निर्वहन उसी से करना पङता ,जो मिल जाता है निज के किस्मत से।।
मन की बात कहने को अब सरकार भी आती नही दूरदर्शन पर,
जो व्यस्त है चुनावी रैली में।
हर पल का माजरा याद रखना मतदातागणो,
अगली बार हिसाब कर लेना इन्ही सब की शैली में।।
कविः खूँटातोड़
मुंबई/कल्याण
कहर ढाओगे कोरोना वाइरस शायरी
कविता- कहर ढाओगे
लड़ोगे नही हालात से तो किधर जाओगे
पाओगे नई जंग तूम जब जिधर जाओगे
वक्त सबका बदलता है पतझड बहार जैसे
आएगी बहारे और तुम तब सवर जाओगे
खाकर चोट तुम डगमगाने लगे क्यो अभी
मोम नहीं जो गर्मी से तुम पिघल जाओगे
तपती धूप है कोई आग का दरिया नहीं
तपोगे जितना उतना तुम निखर जाओगे
अभी और भी आएँगी आँधी और तूफान
डट कर खड़े हो जाओ तुम गुजर जाओगे
जाना जिसे जाने दो पास जो कबुल करो
लड़ोगे तुम हालात से तन्हा कहर ढाओगे
ठहरता नहीं कोई बुरा वक्त चला जाएगा
आज है अंधेरी रात कल तुम सहर पाओगे
श्याम कुँवर भारती (राजभर)
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
बोकारो झारखंड मोब -9955509286
लड़ोगे नही हालात से तो किधर जाओगे
पाओगे नई जंग तूम जब जिधर जाओगे
वक्त सबका बदलता है पतझड बहार जैसे
आएगी बहारे और तुम तब सवर जाओगे
खाकर चोट तुम डगमगाने लगे क्यो अभी
मोम नहीं जो गर्मी से तुम पिघल जाओगे
तपती धूप है कोई आग का दरिया नहीं
तपोगे जितना उतना तुम निखर जाओगे
अभी और भी आएँगी आँधी और तूफान
डट कर खड़े हो जाओ तुम गुजर जाओगे
जाना जिसे जाने दो पास जो कबुल करो
लड़ोगे तुम हालात से तन्हा कहर ढाओगे
ठहरता नहीं कोई बुरा वक्त चला जाएगा
आज है अंधेरी रात कल तुम सहर पाओगे
श्याम कुँवर भारती (राजभर)
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
बोकारो झारखंड मोब -9955509286
डर के आगे जीत है कोरोना वायरस से बचाव पर शायरी
कविता - हिंदी साहित्य
डर के आगे जीत है
आओ मिलकर लड़ें कोरोना से,
अबकी फिर एकबार,
बचकर कहीं भाग नहीं पायें,
किसी घर,देश ,संसार।
डरें नहीं कोरोना से कभी,
अपनी हिम्मत,आत्म विश्वास बढ़ायें,
जब भी निकलें घर से बाहर,
अपने मुँह पर मास्क लगायें।
बिना काम के बाहर नहीं निकलें,
यह बात समझें समझायें,
यदि निकलें घर से कभी बाहर,
दो गज की दुरी अपनायें।
समय समय पर अपने हाथों को धोयें,
समय समय पर सेनिटाईजर लगायें,
गर हो तुम्हें बुखार,सर्दी खांसी,
अविलंब डॉक्टर पास जायें।
गर हो गये पॉजिटिव कोरोना से,
आप कभी भी नहीं घबड़ायें,
खायें दवाई,करें नियमों का पालन,
ठीक होकर अपने घर पर जायें।
अब तो आ गयी कोविड वैक्सीन,
जाकर इसे जरुर लगवायें,
गर अच्छी लगे कवि अकेला की बातें,
तो फिर ये बातें मान जायें।
अगर जीवन में कभी आये विपत्ति,
आप उससे कभी नहीं घबड़ायें,
डर के आगे जीत है सब जान जायें,
खायें,पियें,रहें तंदुरुस्त और मुस्कुरायें।
अरविन्द अकेला
अबकी फिर एकबार,
बचकर कहीं भाग नहीं पायें,
किसी घर,देश ,संसार।
डरें नहीं कोरोना से कभी,
अपनी हिम्मत,आत्म विश्वास बढ़ायें,
जब भी निकलें घर से बाहर,
अपने मुँह पर मास्क लगायें।
बिना काम के बाहर नहीं निकलें,
यह बात समझें समझायें,
यदि निकलें घर से कभी बाहर,
दो गज की दुरी अपनायें।
समय समय पर अपने हाथों को धोयें,
समय समय पर सेनिटाईजर लगायें,
गर हो तुम्हें बुखार,सर्दी खांसी,
अविलंब डॉक्टर पास जायें।
गर हो गये पॉजिटिव कोरोना से,
आप कभी भी नहीं घबड़ायें,
खायें दवाई,करें नियमों का पालन,
ठीक होकर अपने घर पर जायें।
अब तो आ गयी कोविड वैक्सीन,
जाकर इसे जरुर लगवायें,
गर अच्छी लगे कवि अकेला की बातें,
तो फिर ये बातें मान जायें।
अगर जीवन में कभी आये विपत्ति,
आप उससे कभी नहीं घबड़ायें,
डर के आगे जीत है सब जान जायें,
खायें,पियें,रहें तंदुरुस्त और मुस्कुरायें।
अरविन्द अकेला
यह कोरोना काल क्या आया कोरोना वायरस शायरी
आज कल एक इत्तफाक हुआ
जीना दुस्वार हुआ क्योंकि
यह कोरोना काल क्या आया
की पूरा का पूरा शहर बिरान
पहले लोग आपस में प्रेम से
रहतें थे अब मिलना भी दुस्वार
यह कोरोना काल क्या आया
पूरा का पूरा शहर बिरान हुआ
गैर तो गैर सही पर अब
अपनें भी मिलने से इनकार किया
यह कोरोना काल क्या आया
कहीं आना जाना दुस्वार हुआ
जीना भी एक कला है यारों पर
अब जीना भी दुस्वार हुआ
डर डर के जीने से मौत अच्छी
यह कोरोना काल क्या आया
पढ़ना लिखना भी दुस्वार हुआ
डर डर के जीने से अच्छा
अजय सिंह अजनवी
छपरा
जीना दुस्वार हुआ क्योंकि
यह कोरोना काल क्या आया
की पूरा का पूरा शहर बिरान
पहले लोग आपस में प्रेम से
रहतें थे अब मिलना भी दुस्वार
यह कोरोना काल क्या आया
पूरा का पूरा शहर बिरान हुआ
गैर तो गैर सही पर अब
अपनें भी मिलने से इनकार किया
यह कोरोना काल क्या आया
कहीं आना जाना दुस्वार हुआ
जीना भी एक कला है यारों पर
अब जीना भी दुस्वार हुआ
डर डर के जीने से मौत अच्छी
यह कोरोना काल क्या आया
पढ़ना लिखना भी दुस्वार हुआ
डर डर के जीने से अच्छा
अजय सिंह अजनवी
छपरा
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