डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (पुण्य तिथि)
(स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति)
(दिवंगत : 28 फरवरी 1963)
(कविता)
“पुण्य तिथि पर कोटि कोटि नमन एवं विनम्र आदरांजलि भारत माता के इस सपूत और मां सरस्वती के इस प्यारे रत्न देश रत्न को।”
समझ में नहीं आता है, इनको क्या कहूं?
भारत का सपूत या मां शारदा का लाल!
अबतक इस जग में दूजा पैदा नहीं हुआ,
मेधा में जिसने दिखाया हो ऐसा कमाल!
03 दिसंबर 1884 को, ये दुनिया में आए,
जिरादेई, सारण, बिहार का गांव खुशहाल।
समझ में नहीं आता है…………
कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रेसीडेंसी कॉलेज,
राज्य आसाम, बिहार और संयुक्त बंगाल।
मैट्रिक परीक्षा में, राजेंद्र बाबू प्रथम आए,
साथ ही स्थापित किया एक नया मिसाल।
परीक्षार्थी परीक्षक से अच्छा है, सच्चाई है,
उत्तर पुस्तिका बता रही है अपना ख्याल।
समझ में नहीं आता है………….
पढ़ लिखकर, आजादी की लड़ाई में कूदे,
देखा नहीं गया, पराधीन भारत का हाल।
गांधी जी के सच्चे अनुयायी बन गए थे,
काटना चाहते थे जल्दी गुलामी का जाल।
कई बार जेल गए, बड़े बड़े कष्ट सहे वे,
भविष्य दाव पर लगा, था देश का सवाल।
समझ में नहीं आता है…………….
देश आजाद हुआ, वे प्रथम राष्ट्रपति बने,
कया कहे कोई, उनकी प्रतिभा बेमिसाल!
भारत का सपूत, बिहार का लाल गजब,
हमारे दिलों में हैं, चाहे बीते इतने साल।
शायद दूसरा राजेंद्र कभी नहीं पैदा होगा,
हर सवाल का जवाब वे देते थे तत्काल।
समझ में नहीं आता है………
“श्रद्धा से के संग उन्हें कोटि कोटि नमन”
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर कविता शायरी Poem Shayari on Desh Ratna Dr. Rajendra Prasad Prasad Jayanti
देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की जयंती के शुभ अवसर पर-:
कविता
अब कहाँ मिलेंगे मेरे देश को डॉ.राजेंद्र
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अब कहाँ मिलेंगे मेरे देश को डॉ.राजेंद्र,
कहाँ मिलेगी उनसी प्रतिभा बेमिसाल,
कर दिया अपना सर्वस्व न्योछावर,
ऊँचा किया अपने भारत का भाल।
तीन दिसम्बर 1884 को जन्म लिये वह,
बने कमलेश्वरी महादेव के प्रिय लाल,
गाँधी संग भारत को आजाद कराकर,
किया उन्होंने अद्भूत कमाल,कमाल।
दिया तुने देश को सर्वश्रेष्ठ संविधान,
बढाया देश का का मान- सम्मान,
किया राष्ट्रपति पद को सुशोभित,
बढायी तुने अपने देश- प्रदेश की शान।
तेरी प्रतिभा,इमानदारी जग जाहिर,
बनी रही तेरी सदा ऊँची आन-बान,
ऊँचे रखे तुने सद्विचार व सपने,
करते रहे सदैव जन-जन का कल्याण।
अरविन्द अकेला
प्रथम राष्ट्रपति (137वीं जयन्ति) पर एक रचना
मेरा बेतिया नगर चम्पक्-अरण्यम् (चंपारण) का मुख्यालय है।
सोमेश्वर - गोवर्धन शिखर का अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य यहीं हैं।
रामायण महाग्रंथ का सृजन, ऋषि वाल्मीकि ने यहीं किया था।
पाण्डव भीम ने ठोरी में चट्टाने तोड़ मार्ग का निर्माण किया था।
कृष्ण बहन सुभद्रा दस्युओं से आक्रांत हो इस भूमि पर पाषाण हूई थी।
सिद्धार्थ राज-पाठ त्याग यहीं आए, बुद्धत्व प्राप्ती निकट वैशाली में हुई थी।
कूटनिती का ध्वज चाणक्य ने यहीं पर गाड़ा, गुप्त-वंश का विस्तार हुआ था।
गाँधी की आँधी चली यहाँ, सत्याग्रह का इसी बेतिया से जयधोष उठा था।
जय प्रकाश का आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ, युवाओं का रक्त भी बहा था।
मेरे शहर का दिनकर राष्ट्रकवि बन हिन्दी साहित्य का सिरमौर बन चमके थे।
राजेन्द्र बाबू की मंत्रणा से बाबा भीमराव अंबेदकर यहीं 'संविधान' लिखे थे।
जीरादेई के बेतिया दिल्ली का कंटकाजीर्ण पथगामि श्रेष्टतम् नागरिक बने थे।
भारतीय संविधान में खोट छुपी, प्रथम संबोधन में तीखी चर्चा खुली किए थे।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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