आजादी का अमृत महोत्सव पर कविता Azadi Ka Amrit Mahotsav Poem in Hindi
आजादी का अमृत महोत्सव
शीर्षकः क्यों कैद कर रखे हो
यह भारत भी तो है आजाद,
तुम भी तो अच्छे आजाद हो।
बुलंद भारत के बुलंदी तुम हो,
तुम्हीं भारत के जायदाद हो।।
सदियो रहे हो गुलाम तुम तो,
आजादी के मजे चख रहे हो।
आज आजाद हैं ये भारतवासी,
क्या इसीलिए कैद रख रहे हो ?
हर सुखों से संपन्न यह भारत,
किन्तु आज तू मुझे खो रहा है।
तुम तो जी रहे हो सानंद जीवन,
किन्तु मेरा यह हृदय रो रहा है।।
आज आधुनिक रिवाज मानकर,
गँवा रहे निज सभ्यता संस्कृति।
खदेड़े थे क्रांतिकारी अंग्रेजों को,
क्या भूल गए अपनी आपबीती।।
क्या नहीं समझे अबतक मुझको,
मैं माँ व माँओं के सिर का बिन्दी।
नहीं समझे तो समझो अब भी,
मैं ही हूँ तुम्हारी राष्ट्रभाषा हिन्दी।।
सब कोई आजाद इस भारत में,
मुझको भी तुम तो आजाद करो।
मैं राष्ट्र हिन्द के राष्ट्रभाषा हिन्दी,
मेरी राष्ट्रीयता भी आबाद करो।।
अरुण दिव्यांश
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
डुमरी अड्डा, छपरा
बिहार।
आजादी का अमृत महोत्सव
आजाद महोत्सव
मना रहे हो आजाद महोत्सव,
आजाद यह हिन्दुस्तान कहाँ है !
दे रखे तुम अंग्रेजी को आश्रय,
हिन्दी का यहाँ पे स्थान कहाँ है ?
अंग्रेज तो चले गए ही यहाँ से,
अंग्रेजी हुकूमत अब रह गई है।
काले ही बनकर खड़े अब गोरे,
हिन्दी ही विदा अब कह गई है।।
जयहिन्द तुम कहते हो गर्व से,
जय इण्ड क्यों नहीं कहते हो।
हिन्दुस्तान की इस धरा पर रह,
अंग्रेजी में ही तुम भी बहते हो।।
हिन्दुस्तान में जबतक हिन्दी नहीं,
आजाद हुआ हिन्दुस्तान कहाँ।
बहे न जबतक हिन्दुस्तानी हिन्दी,
हिन्दुस्तानी पूर्ण अरमान कहाँ।।
भारत हमारा प्यारा है सुंदर राष्ट्र,
राष्ट्रभाषा हिन्दी को अधिकार दो।
हिन्दी का रहा है सुंदर आचरण,
हिन्दी जीवन का सुंदर सार हो।।
हिन्दी सीख रहे हैं बहुत विदेशी,
हिन्दुस्तानी को उससे प्यार कहाँ।
अंग्रेज किए हिन्दी की कोशिश,
हिन्दुस्तानी हिन्दी न आधार यहाँ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा सारण
बिहार।
आजादी का अमृत महोत्सव
हम कहाँ आजाद
आजादी तो मिली भारत को,
किंतु हम कहाँ हुए आजाद हैं।
आजादी तो तभी है सार्थक,
जब हम सुखी संपन्न आबाद हैं।।
छक्के मारते नेता व अधिकारी,
शपथ कहाँ किसी को याद है।
मृदुल वाणी तो होती बहुत सुंदर,
पर गाद बैठा उनके तो लाद है।।
नेता अधिकारी के बढ़ते वेतन,
कर्मचारी पर ही होता विवाद है।
इन्हें तो मिलते रुपये के पुलिंदे,
शेष तो बस वैसे ही बर्बाद हैं।।
इनके तो बढ़ते प्रतिवर्ष हैं वेतन,
जनता की नहीं कोई निनाद है।
जनता पर बढ़ती सदा महंगाई,
जैसे जनता सारी बेबुनियाद है।।
आजादी तो गिरी है ऊपर से,
किंतु डाल पर ही अँटक गई है।
कैसे कहूँ सरकार गटक गई है,
या कहीं जनता ही भटक गई है।।
एक आबादी का मार झेले जनता,
दूजे मार झेलती वह महंगाई का।
तीसरी मार बेरोजगारी है झेलती,
आपसी कलह है भाई भाई में।।
जनता के कंधे पर बंदूक रखकर,
पक्ष विपक्ष गोली दोनो चलाते हैं।
गोली भी चलती तो जनता पर ही,
सत्तावाले कार्य वही अपनाते हैं।।
जनता की ही तो होती है सरकार,
जनता ही फिर मूर्ख बन जाती है।
आजादी तो एक वोट देने की है,
उसके बाद कहाँ तन पाती है।।
कहते हैं समान अधिकार सबका,
कहाँ किसका है अधिकार समान।
कोई खाते खाते ही तो मरता है,
गरीबों की पूर्ति कैसे हो अरमान।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा सारण
बिहार।
आजादी के अमृत महोत्सव पर कविता
अमृत महोत्सव
अमरीत महोत्सव शान है
हाथ तिरंगा ले चलें।
जन गण गाएं सब भारती
कदम ताल आगे बढ़े।
जय जय भारत जय हिंद अब
गूंज रहा सब रै दिशा।
जन गान तिरंगा गा रहे
दिन हो या अब रै निशा।
अरमान उन्हीं सरदार के
उड़े गगन में रै अभी।
भारत माता बस एक है
हां हां बोले थे कभी।
नेता जी,गांधी,नेहरू
याद सदा बलिदान है।
हस झूले फांसी बोस जी
जन जन के अभिमान है।
विश्व करे शत गुणगान क्यों
बढ़ता भारत बस बढ़े।
युवा हृदय अति दृघनिश्चयी
कृतिमान गगन को चढ़े।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
Naugachiya
भागलपुर,बिहार
भक्ति गीत : स्वतंत्रता दिवस पर शिव
“ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय”
“वंदे मातरम्, वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्”
“समस्त भारतवासी को आजादी के अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं अशेष बधाईयां।”
स्वतंत्रता दिवस मना रहा है भारत देश,
हे शिव शंकर, डमरू अपना बजा देना!
तिरंगा प्यारा फहरा रहा है भारत देश,
महादेव त्रिशूल भी अपना चमका देना।
हे शिव शंकर………..
आजादी के अमृत महोत्सव का मौसम है,
खिला खिला हर भारतवासी का जीवन है।
राष्ट्रभक्ति में सारा भारत खोया हुआ है,
स्वामी, ऊपर से कृपा अपनी बरसा देना!
हे शिव शंकर…………
हमलोग कर रहे हैं बलिदानियों को याद,
कुर्बानी देकर जिन्होंने देश किया आजाद।
आजाद, भगत और सुभाष की तस्वीर पे,
अर्पित किया गया बेलपत्र एक गिरा देना!
हे शिव शंकर…………
सामने हैं सुखदेव, राजगुरु और खुदीराम,
हम कर रहे हैं उनको कोटि कोटि प्रणाम।
सारे भारत में होती है प्रभु तेरी अराधना,
तिरंगा को देखकर एक बार मुस्कुरा देना!
हे शिव शंकर…………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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