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तुम सर्वज्ञ हो : हिंदी कविता | Tum Sarvagya Ho : Hindi Kavita

तुम सर्वज्ञ हो : हिंदी कविता | Tum Sarvagya Ho : Hindi Kavita

शीर्षक- तुम सर्वज्ञ हो
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तुम स्वरों की व्यंजना हो
मन का शिलान्यास हो

सरगम की साधना हो
सप्त सुर का व्यास हो

तुम गद्य हो तुम पद्य हो
तुम शब्द कोष अनंत हो

तुम व्यक्त हो अव्यक्त हो
तुम मौन भी मुखर सी हो

तुम भावों की बयार हो
तुम व्यवहार शिष्टाचार हो

तुम हास- परिहास हो
कनक-कनक में अनुप्रास हो

तुम वात्सल्य लोरी हो
तुम पिता की ठंडी छाँव हो

तुम प्रेम इत्र की गंध हो
तुम पाती में बसा बसंत हो

तुम दूरियों का दमन हो
तुम एकांत का समन हो

तुम सँभावना का द्वार हो
तुम दो दिलों का राग हो

तुम वैमनस्य का तोड़ हो
तुम ह्रदय का गठजोड़ हो

तुम तप्त ह्रदय की चाह हो
तुम नैनो की बरसात हो

तुम सोहर हो तुम चैती हो
तुम कजरी और मल्हार हो

तुम वार्ता अधिवेशन हो
तुम समाधान अन्वेषण हो

तुम समर की ललकार हो
तुम संधि युद्ध शांति हो

तुम तीक्ष्ण हो तुम ग्रीष्म हो
तुम प्रतिशोध और प्रहार हो

तुम तुकांत व अकारान्त हो
तुम भ्रमों का समाधान हो

तुम नीति हो सुनीति हो
तुम सीमा की रणनीति हो

तुम जप हो तुम तप हो
तुम राम चरित गान हो

तुम व्याप्त हो पर्याप्त हो
तुम प्रार्थना की जोत हो

तुम भीष्म हो तुम कृष्ण हो
तुम हरिश्चंद्र सी सत्य हो

तुम भव्य हो विशाल हो
तुम ब्रम्ह सी अकाट्य हो

तुम कवि कलम की प्रीति हो
तुम संग्रहालय थाती हो

तुम बोलियों की जननी हो
तुम उर्दू की कर्णधार हो

तुम रोज का संवाद हो
तुम मानस की आवाज़ हो

तुम बिंदी सी सूक्ष्म हो
तुम हिंद सी विशाल हो

तुम नदी सी अनुशासित हो
तुम समुद्र सा उफान हो

तुम हमारी आन हो तुम हमारी शान हो
तुम ही अभिव्यक्ति और तुम ही पहचान हो

— ममता सिंह (स्वलिखित)
अहमदाबाद

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