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शरद पूर्णिमा की सही तिथि और समय, शुभ मुहूर्त, महत्व और व्रत कथा

शरद पूर्णिमा की सही तिथि और समय, शुभ मुहूर्त, महत्व और व्रत कथा

आज 16 अक्टूबर सन 2024 दिन बुधवार है। आज का दिन बहुत शुभ है इसलिए कि आज के दिन शरद पूर्णिमा का विशेष 
 व्रत पड़ रहा है। भारतवर्ष में शरद पूर्णिमा के दिन को विशेष धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है। आज के पोस्ट में हम शरद पूर्णिमा की सही तिथि, समय, शुभ मुहूर्त और महत्व तथा शरद पूर्णिमा की कहानी के बारे में विस्तृत चर्चा करने जा रहे हैं। तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं कि शरद पूर्णिमा का व्रत क्यों रखा जाता है और इसका महत्व एवं कथा क्या है?

शरद पूर्णिमा हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसे विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व दिया जाता है। यह पर्व अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से सुशोभित होता है। इसे 'कोजागरी पूर्णिमा', 'कौमुदी महोत्सव', या 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन स्वास्थ्य, संपन्नता और मानसिक शांति की कामना के लिए व्रत रखने और रात्रि में चंद्रमा के दर्शन करने का विशेष महत्व होता है।

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शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त कब है?

भारतीय वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष 16 अक्टूबर दिन  बुधवार को शरद पूर्णिमा का व्रत पड़ रहा है। 16 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 40 मिनट पर आश्विन पूर्णिमा का प्रारंभ होगा। और 17 अक्टूबर दिन गुरुवार को संध्याकाल में 04 बजकर 55 मिनट पर आश्विन पूर्णिमा का समापन हो रहा है। इसके पश्चात कार्तिक माह के प्रतिपदा तिथि की शुरुआत हो जाएगी।

शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व

शरद पूर्णिमा का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो मानव शरीर और मन को ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह पर्व मुख्यतः भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, और चंद्रमा की पूजा से जुड़ा हुआ है।

चंद्रमा और औषधीय गुण

पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों से धरती पर अमृत की वर्षा होती है। चंद्रमा की किरणें इस रात औषधीय गुणों से युक्त होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं। इसलिए इस रात खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखकर उसका सेवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह माना जाता है कि इस खीर को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा

शरद पूर्णिमा का दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत रखते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जो व्यक्ति इस दिन रात्रि में जागरण करते हुए माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसे संपन्नता और वैभव की प्राप्ति होती है। इस कारण शरद पूर्णिमा को 'कोजागरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है – "कौन जाग रहा है?"। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जागते हुए भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

रास पूर्णिमा और श्रीकृष्ण की लीला

शरद पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ रास रचाया था। यह रास लीला प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। भक्त इस दिन रात्रि में भजन-कीर्तन करके भगवान कृष्ण को प्रसन्न करते हैं और उनकी लीला का स्मरण करते हैं।

शरद पूर्णिमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

उपवास और व्रत का महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन उपवास रखने का भी विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से मानसिक शांति, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति होती है। व्रत रखने से मन और शरीर दोनों की शुद्धि होती है, जिससे व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता मिलती है। उपवास के दौरान भक्त भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

चंद्र दर्शन और चंद्र किरणों का महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन रात में चंद्रमा का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें धरती पर अमृत के समान प्रभाव डालती हैं, जो शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं और मानसिक तनाव को दूर करती हैं। इस कारण कई भक्त रात के समय अपने घरों की छत पर चंद्रमा की रोशनी में बैठते हैं और ध्यान करते हैं। यह ध्यान और साधना मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए लाभकारी होती है।

व्रत कथा

शरद पूर्णिमा के व्रत से जुड़ी एक प्रमुख कथा प्रचलित है, जो इस पर्व के महत्व को समझाती है।

कथा का आरंभ

प्राचीन समय में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार था, जिसमें एक ब्राह्मणी माता लक्ष्मी की परम भक्त थी। वह हर वर्ष शरद पूर्णिमा का व्रत करती थी और रात्रि में जागरण करके देवी लक्ष्मी की पूजा करती थी। उसकी भक्ति और श्रद्धा इतनी गहरी थी कि माता लक्ष्मी ने उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया था कि उसके घर में सदा संपन्नता रहेगी।

राजा और रानी की कहानी

एक अन्य कथा के अनुसार, एक राजा और रानी थे, जिनके जीवन में बहुत दुख और आर्थिक तंगी थी। रानी ने शरद पूर्णिमा का व्रत रखने का संकल्प लिया और पूरी निष्ठा से व्रत किया। व्रत करने के बाद रानी को रात में जागते रहकर माता लक्ष्मी की पूजा करनी थी, लेकिन वह अचानक सो गई। इस कारण माता लक्ष्मी उनके घर नहीं आईं।

राजा और रानी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने अगले वर्ष फिर से शरद पूर्णिमा का व्रत पूरी श्रद्धा से किया और इस बार रानी ने रात भर जागकर माता लक्ष्मी की पूजा की। उनकी भक्ति और जागरण से माता लक्ष्मी प्रसन्न हुईं और उन्होंने राजा-रानी को अपार धन-संपत्ति का आशीर्वाद दिया, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि का वास हो गया।

शरद पूर्णिमा कथा का संदेश

इस कथा का संदेश यह है कि शरद पूर्णिमा के दिन जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठा से व्रत रखते हुए रात में जागरण करता है, उसे देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह कथा इस बात पर भी जोर देती है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में विश्वास और धैर्य बनाए रखना चाहिए, क्योंकि सच्ची भक्ति और समर्पण से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।

शरद पूर्णिमा के प्रमुख अनुष्ठान

खीर का महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाने और उसे चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो खीर में समाहित हो जाते हैं। रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखकर प्रातःकाल उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह खीर परिवार के सभी सदस्य मिलकर खाते हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्यता बनी रहती है।

रात्रि जागरण और पूजा

शरद पूर्णिमा की रात जागरण करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्त इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और रात्रि भर भजन-कीर्तन के साथ जागरण करते हैं। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन जागरण करता है, उसे देवी लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होती।

देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा

इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है। विशेष रूप से व्यापारी और व्यवसायी इस दिन अपने व्यापार और धन के अभाव को दूर करने के लिए व्रत और पूजा करते हैं। पूजा के दौरान भक्त माता लक्ष्मी के 108 नामों का जाप करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।

आधुनिक संदर्भ में शरद पूर्णिमा

आज के आधुनिक समय में भी शरद पूर्णिमा का पर्व अपनी परंपराओं और आस्थाओं के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का आध्यात्मिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व आज भी बरकरार है। लोग इस दिन को उत्साहपूर्वक मनाते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे बैठकर ध्यान करने और चंद्रमा की रोशनी का आनंद लेने का भी विशेष महत्व है। यह दिन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आजकल लोग इस दिन को योग, ध्यान, और मानसिक शांति की दृष्टि से भी मनाते हैं, जिससे उनकी आंतरिक उन्नति हो सके।

निष्कर्ष
शरद पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति और धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह पर्व न केवल देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का अवसर है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में छिपे औषधीय गुणों का सेवन करने और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का शुभ योग है।

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