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टीस : हिन्दी कविता

टीस : हिन्दी कविता

विषय : टीस
विधा : व्यंग्य
दिनांक : 11 नवंबर, 2024
दिवा : सोमवार

टीस

कर न सका हित किसी का,
अपनी ही ये टीस समझकर।
पी न सका मैं अमृत भी यह,
जहरीला सा विष समझकर।।
उसका टीस ही था मेरा हर्ष,
तब निकलता सज धजकर।
पहुॅंचता था मैं हालचाल लेने,
जब चेहरे पर बारह बजकर।।
उसका सुख मेरे मन का टीस,
आग लगाता काम तजकर।
मुॅंह में राम बगल लेकर छुरी,
रास्ते में ही श्रीराम भजकर।।
था तो भोला भाला ये इंसान,
मैं नीति में निकला मजकर।
बहाना बना शीघ्र निकलता,
सोची हुई ये नीति कजकर।।
पूर्णतः मौलिक एवं 
अप्रकाशित रचना 
अरुण दिव्यांश 
डुमरी अड्डा 
छपरा ( सारण )
बिहार। 

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