वेश्या: वेश्यावृत्ति पर कविता
विषय : वेश्या
दिनांक : 27 नवंबर,।
।
2024
दिवा : बुधवार
वेश्या
वेश्या किसी की पत्नी होती है क्या,
उसके कोई अपने भी होते हैं क्या ?
वेश्या तो सिर्फ वेश्या ही होती है,
उसके कोई सपने भी होते हैं क्या ?
क्षणिक पति और क्षणिक ही पत्नी,
नहीं पीर पराया का ही एहसास है।
किशोर युवा और वृद्धजन भी सारे,
जन जन दिखे पति उसके पास है।।
नहीं रिश्ता वहाॅं कोई भी पावन,
जन जन की बनती वह तो ग्रास है।
नीरस जीवन घुट घुटकर ही जीना,
चलता जैसे सदैव ही उर्ध्व साॅंस है।।
तन मन जिसका होता है बिकाऊ,
जीवन जिसका सदा रहता उदास है।
धन धन केवल मन में ही समाया,
नहीं रिश्ता होता कोई भी खास है ।।
नकली चेहरा जिसका हो राम का,
बनता वही उसका तो एक दास है।
नहीं सतीत्व नहीं कोई अस्तित्व,
बनता जीवन एक जिंदा लाश है।।
वेश्या की होती केवल वेश्यावृत्ति,
नहीं किसी से उसे कोई है प्रीति।
वेश्या को है वह हृदय ही कहाॅं,
समझ पाए जो नीति व अनीति।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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