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चोल काल के दौरान राज्य पर टिप्पणी कीजिए

चोल काल के दौरान राज्य पर टिप्पणी


चोल साम्राज्य (लगभग 850 ई. से 1279 ई.) दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य था। इसने दक्षिण भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया और अपनी कुशल प्रशासनिक व्यवस्था, सैन्य शक्ति, व्यापारिक उन्नति और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध रहा। इस लेख में हम चोल साम्राज्य के दौरान राज्य की प्रकृति, प्रशासनिक व्यवस्था, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

1. चोल साम्राज्य की स्थापना और विस्तार

(क) चोल वंश का उदय

  • चोल वंश का प्राचीन इतिहास संगम युग (ईसा पूर्व 3री शताब्दी - ईसा पश्चात 3री शताब्दी) से मिलता है, लेकिन उनका वास्तविक उत्थान 9वीं शताब्दी में हुआ।

  • इस काल में विजयालय चोल (850-871 ई.) ने पल्लवों को हराकर चोल साम्राज्य की नींव रखी।

(ख) प्रमुख शासक और साम्राज्य का विस्तार

  • राजराजा प्रथम (985-1014 ई.) ने चोल साम्राज्य का व्यापक विस्तार किया और श्रीलंका तथा मालदीव पर विजय प्राप्त की।

  • राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ई.) ने बंगाल, इंडोनेशिया और मलय द्वीप समूह तक अपने साम्राज्य का प्रभाव फैलाया।

  • बाद में कुलोत्तुंग चोल (1070-1120 ई.) के समय भी चोल साम्राज्य एक महाशक्ति बना रहा।


2. चोल प्रशासनिक व्यवस्था

(क) केंद्रीकृत प्रशासन

  • चोल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत संगठित थी।

  • राजा सर्वोच्च शासक था और उसका निर्णय अंतिम माना जाता था।

(ख) प्रशासनिक विभाजन

  • साम्राज्य को चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया था:

    1. मंडलम (प्रांत) – सबसे बड़ा प्रशासनिक भाग

    2. वलनाडु (जिले) – प्रांत के भीतर उपखंड

    3. नाडु (तहसील) – वलनाडु के छोटे भाग

    4. ग्राम (गाँव) – स्थानीय प्रशासन की इकाई

(ग) स्थानीय स्वशासन (ग्राम सभा प्रणाली)

  • चोल शासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता स्थानीय स्वशासन प्रणाली थी।

  • गाँवों में सभा और उर (ग्राम पंचायतें) प्रशासन का कार्य करती थीं।

  • महत्वपूर्ण निर्णय गाँव की सभाओं द्वारा लिए जाते थे, जिससे ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित हुई।

(घ) कर प्रणाली

  • चोल काल में कर संग्रह की प्रभावी प्रणाली थी।

  • भूमिकर (वेत्टिवागई), व्यापार कर, सिंचाई कर आदि प्रमुख कर थे।

  • करों का उपयोग मंदिरों, जलाशयों और सड़कों के निर्माण में किया जाता था।


3. चोल सैन्य व्यवस्था

(क) मजबूत सेना और नौसेना

  • चोलों के पास एक शक्तिशाली सेना थी जिसमें पैदल सैनिक, घुड़सवार सेना और हाथी दल शामिल थे।

  • चोलों ने एक सशक्त नौसेना का निर्माण किया, जिससे वे समुद्री मार्गों को नियंत्रित कर सके।

  • उन्होंने श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई द्वीपों पर विजय प्राप्त की।

4. आर्थिक विकास और व्यापार

(क) कृषि और सिंचाई

  • कृषि चोल साम्राज्य की आर्थिक रीढ़ थी।

  • उन्होंने नहरों, जलाशयों और कृत्रिम झीलों का निर्माण कर सिंचाई व्यवस्था को विकसित किया।

  • कावेरी नदी डेल्टा को "चोलों का धान का कटोरा" कहा जाता था।

(ख) व्यापार और वाणिज्य

  • चोल साम्राज्य भारत और विदेशों के साथ व्यापार में अत्यधिक समृद्ध था।

  • दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, अरब देशों और यूरोप के साथ व्यापार संबंध स्थापित किए गए।

  • प्रमुख निर्यात वस्तुएँ – मसाले, हाथीदांत, रेशम, मोती, धातु की मूर्तियाँ।

  • प्रमुख बंदरगाह – पुहार (कावेरीपट्टनम), महाबलीपुरम और नेगापट्टनम


5. समाज और संस्कृति

(क) धर्म और मंदिर निर्माण

  • चोल शासक शैव धर्म के अनुयायी थे, लेकिन वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया गया।

  • इस काल में बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर), गंगैकोंडा चोलपुरम और ऐरावतेश्वर मंदिर जैसे भव्य मंदिर बनाए गए।

(ख) स्थापत्य और मूर्तिकला

  • चोल स्थापत्य द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • उनके द्वारा निर्मित मंदिरों में विशाल गोपुरम, ऊँचे विमानों और उत्कृष्ट नक्काशी का प्रयोग किया गया।

  • चोलों ने कांस्य मूर्तिकला में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

(ग) साहित्य और भाषा

  • संस्कृत और तमिल भाषा का विकास हुआ।

  • चोलों के संरक्षण में नंबियंदर नंबि और अप्पर जैसे संत कवियों ने भक्ति साहित्य की रचना की।

  • तिरुवाचकम और तिरुमुरई जैसे ग्रंथ इस काल में लिखे गए।

6. चोल साम्राज्य का पतन

(क) 12वीं शताब्दी में पतन की शुरुआत

  • 12वीं शताब्दी के बाद चोल साम्राज्य कमजोर होने लगा।

  • चालुक्य, पांड्य और होयसला राजवंशों ने इसे चुनौती दी।

(ख) पांड्य राजवंश के उदय के कारण पतन

  • 1279 ई. में पांड्य शासकों ने चोल साम्राज्य का अंत कर दिया।

  • बाद में यह क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य के अधीन आ गया।

निष्कर्ष

चोल काल भारतीय इतिहास में प्रशासनिक दक्षता, मजबूत नौसेना, समृद्ध व्यापार और उत्कृष्ट कला व स्थापत्य के लिए जाना जाता है। इस साम्राज्य ने स्थानीय स्वशासन की अनूठी प्रणाली विकसित की, जिससे गाँवों में लोकतांत्रिक प्रणाली को बढ़ावा मिला। चोलों ने दक्षिण भारत में राजनीतिक स्थिरता प्रदान की और मंदिर निर्माण की महान परंपरा को जन्म दिया। उनकी नौसेना शक्ति ने दक्षिण-पूर्व एशिया तक भारतीय प्रभाव को फैलाया। चोल शासन न केवल दक्षिण भारत बल्कि संपूर्ण भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है।

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