चोल काल के दौरान राज्य पर टिप्पणी
1. चोल साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
(क) चोल वंश का उदय
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चोल वंश का प्राचीन इतिहास संगम युग (ईसा पूर्व 3री शताब्दी - ईसा पश्चात 3री शताब्दी) से मिलता है, लेकिन उनका वास्तविक उत्थान 9वीं शताब्दी में हुआ।
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इस काल में विजयालय चोल (850-871 ई.) ने पल्लवों को हराकर चोल साम्राज्य की नींव रखी।
(ख) प्रमुख शासक और साम्राज्य का विस्तार
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राजराजा प्रथम (985-1014 ई.) ने चोल साम्राज्य का व्यापक विस्तार किया और श्रीलंका तथा मालदीव पर विजय प्राप्त की।
राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ई.) ने बंगाल, इंडोनेशिया और मलय द्वीप समूह तक अपने साम्राज्य का प्रभाव फैलाया।
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बाद में कुलोत्तुंग चोल (1070-1120 ई.) के समय भी चोल साम्राज्य एक महाशक्ति बना रहा।
2. चोल प्रशासनिक व्यवस्था
(क) केंद्रीकृत प्रशासन
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चोल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत संगठित थी।
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राजा सर्वोच्च शासक था और उसका निर्णय अंतिम माना जाता था।
(ख) प्रशासनिक विभाजन
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साम्राज्य को चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया था:
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मंडलम (प्रांत) – सबसे बड़ा प्रशासनिक भाग
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वलनाडु (जिले) – प्रांत के भीतर उपखंड
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नाडु (तहसील) – वलनाडु के छोटे भाग
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ग्राम (गाँव) – स्थानीय प्रशासन की इकाई
(ग) स्थानीय स्वशासन (ग्राम सभा प्रणाली)
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चोल शासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता स्थानीय स्वशासन प्रणाली थी।
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गाँवों में सभा और उर (ग्राम पंचायतें) प्रशासन का कार्य करती थीं।
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महत्वपूर्ण निर्णय गाँव की सभाओं द्वारा लिए जाते थे, जिससे ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित हुई।
(घ) कर प्रणाली
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चोल काल में कर संग्रह की प्रभावी प्रणाली थी।
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भूमिकर (वेत्टिवागई), व्यापार कर, सिंचाई कर आदि प्रमुख कर थे।
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करों का उपयोग मंदिरों, जलाशयों और सड़कों के निर्माण में किया जाता था।
3. चोल सैन्य व्यवस्था
(क) मजबूत सेना और नौसेना
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चोलों के पास एक शक्तिशाली सेना थी जिसमें पैदल सैनिक, घुड़सवार सेना और हाथी दल शामिल थे।
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चोलों ने एक सशक्त नौसेना का निर्माण किया, जिससे वे समुद्री मार्गों को नियंत्रित कर सके।
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उन्होंने श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई द्वीपों पर विजय प्राप्त की।
4. आर्थिक विकास और व्यापार
(क) कृषि और सिंचाई
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कृषि चोल साम्राज्य की आर्थिक रीढ़ थी।
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उन्होंने नहरों, जलाशयों और कृत्रिम झीलों का निर्माण कर सिंचाई व्यवस्था को विकसित किया।
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कावेरी नदी डेल्टा को "चोलों का धान का कटोरा" कहा जाता था।
(ख) व्यापार और वाणिज्य
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चोल साम्राज्य भारत और विदेशों के साथ व्यापार में अत्यधिक समृद्ध था।
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दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, अरब देशों और यूरोप के साथ व्यापार संबंध स्थापित किए गए।
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प्रमुख निर्यात वस्तुएँ – मसाले, हाथीदांत, रेशम, मोती, धातु की मूर्तियाँ।
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प्रमुख बंदरगाह – पुहार (कावेरीपट्टनम), महाबलीपुरम और नेगापट्टनम।
5. समाज और संस्कृति
(क) धर्म और मंदिर निर्माण
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चोल शासक शैव धर्म के अनुयायी थे, लेकिन वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया गया।
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इस काल में बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर), गंगैकोंडा चोलपुरम और ऐरावतेश्वर मंदिर जैसे भव्य मंदिर बनाए गए।
(ख) स्थापत्य और मूर्तिकला
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चोल स्थापत्य द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
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उनके द्वारा निर्मित मंदिरों में विशाल गोपुरम, ऊँचे विमानों और उत्कृष्ट नक्काशी का प्रयोग किया गया।
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चोलों ने कांस्य मूर्तिकला में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(ग) साहित्य और भाषा
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संस्कृत और तमिल भाषा का विकास हुआ।
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चोलों के संरक्षण में नंबियंदर नंबि और अप्पर जैसे संत कवियों ने भक्ति साहित्य की रचना की।
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तिरुवाचकम और तिरुमुरई जैसे ग्रंथ इस काल में लिखे गए।
6. चोल साम्राज्य का पतन
(क) 12वीं शताब्दी में पतन की शुरुआत
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12वीं शताब्दी के बाद चोल साम्राज्य कमजोर होने लगा।
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चालुक्य, पांड्य और होयसला राजवंशों ने इसे चुनौती दी।
(ख) पांड्य राजवंश के उदय के कारण पतन
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1279 ई. में पांड्य शासकों ने चोल साम्राज्य का अंत कर दिया।
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बाद में यह क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य के अधीन आ गया।
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