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विजयनगर साम्राज्य के राज्य निर्माण की प्रकृति पर चर्चा कीजिए

विजयनगर साम्राज्य के राज्य निर्माण की प्रकृति


विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ई.) भारत के मध्यकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण साम्राज्य था, जिसने दक्षिण भारत में राजनीतिक स्थिरता, सांस्कृतिक समृद्धि और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी। यह साम्राज्य न केवल अपनी सैन्य शक्ति और प्रशासनिक दक्षता के लिए प्रसिद्ध था, बल्कि अपने समृद्ध सांस्कृतिक योगदान और हिंदू पुनर्जागरण के लिए भी जाना जाता है। इस लेख में हम विजयनगर साम्राज्य के राज्य निर्माण की प्रकृति पर विस्तृत चर्चा करेंगे, जिसमें इसके राजनीतिक, प्रशासनिक, सैन्य, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का विश्लेषण किया जाएगा।

1. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना और उद्देश्य

(क) साम्राज्य की स्थापना

  • विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का राय ने की थी, जो पहले काकतीय और होयसला शासकों के अधीन कार्यरत थे।

  • इस साम्राज्य की स्थापना दिल्ली सल्तनत के बढ़ते प्रभाव को रोकने और दक्षिण भारत में एक संगठित हिंदू शक्ति को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी।

  • इसके शासकों ने दक्षिण भारत को एकजुट किया और इसे मुस्लिम आक्रमणों से बचाया।


(ख) साम्राज्य का विस्तार और स्थायित्व

  • विजयनगर साम्राज्य ने अपने शासनकाल में कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र पर अधिकार स्थापित किया।

  • इसके बाद यह धीरे-धीरे पूरे दक्षिण भारत में फैल गया और एक शक्तिशाली हिंदू राज्य बन गया।

  • इसके अंतर्गत वर्तमान आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के कई भाग शामिल थे।


2. राज्य निर्माण की राजनीतिक प्रकृति

(क) केंद्रीकृत प्रशासन

  • विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन अर्द्ध-केंद्रीकृत था, जिसमें राजा सर्वोच्च सत्ता का स्वामी था, लेकिन प्रांतों को कुछ हद तक स्वायत्तता प्राप्त थी।

  • शासक का पद वंशानुगत था, लेकिन कभी-कभी सैन्य बल द्वारा राजा को हटाने की घटनाएँ भी हुईं।


(ख) प्रशासनिक विभाजन

  • साम्राज्य को राज्य (मंडल), जिले (नाडु) और गाँव (ग्राम) में विभाजित किया गया था।

  • प्रत्येक प्रांत का प्रशासन एक नायक (सेनानायक या गवर्नर) के हाथों में होता था।

(ग) नायक प्रणाली

  • विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में नायक प्रणाली महत्वपूर्ण थी, जिसमें स्थानीय सामंतों (नायकों) को भूमि दी जाती थी और वे राजा के प्रति उत्तरदायी होते थे।

  • नायक कर वसूलते थे, सेना का संचालन करते थे और अपने क्षेत्रों का प्रशासन संभालते थे।

(घ) न्यायिक प्रणाली

  • न्याय व्यवस्था धर्मशास्त्रों और परंपराओं पर आधारित थी।

  • राजा सर्वोच्च न्यायाधीश होता था, और ग्राम स्तर पर पंचायतें स्थानीय विवादों का निपटारा करती थीं।


3. राज्य निर्माण की सैन्य प्रकृति

(क) सैन्य संगठन

  • विजयनगर साम्राज्य की सेना मजबूत थी और इसमें घुड़सवार, पैदल सैनिक, हाथी दल और नौसेना शामिल थे।

  • विदेशी व्यापारियों से बारूद और घुड़सवार सेना के लिए घोड़े मंगाए जाते थे।

(ख) किलेबंदी और सुरक्षा

  • साम्राज्य की राजधानी विजयनगर (हम्पी) को मजबूत किलों और सुरक्षा दीवारों से घेरा गया था।

  • राज्य की सीमाओं पर किले बनाए गए, जो सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण थे।

(ग) बहमनी सल्तनत और दक्कनी सुल्तानों से संघर्ष

  • विजयनगर साम्राज्य का लगातार संघर्ष बहमनी सल्तनत और बाद में दक्कनी सुल्तानों से चलता रहा।

  • 1565 ई. में तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर को भारी हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।


4. राज्य निर्माण की आर्थिक प्रकृति

(क) कृषि और सिंचाई

  • कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी, और किसानों को सुरक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे।

  • नहरों, तालाबों और बांधों का निर्माण किया गया ताकि जल आपूर्ति में सुधार हो सके।

  • चावल, कपास, गन्ना और मसालों की खेती की जाती थी।

(ख) व्यापार और वाणिज्य

  • विजयनगर साम्राज्य एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।

  • दक्षिण भारत के समुद्री व्यापार मार्गों को नियंत्रित किया जाता था और अरब, फारस, पुर्तगाल और चीन के व्यापारियों से संबंध बनाए गए।

  • विजय नगर में हीरे, मसाले, कपड़ा और घोड़े का व्यापार बहुत विकसित था।

(ग) मुद्रा प्रणाली

  • विजयनगर साम्राज्य ने स्वर्ण (पनम), चांदी और तांबे के सिक्के चलाए।

  • ये सिक्के व्यापार के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक थे।

5. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रकृति

(क) धर्म और हिंदू पुनर्जागरण

  • विजयनगर साम्राज्य हिंदू धर्म का प्रमुख संरक्षक था और इसके शासकों ने मंदिर निर्माण को बढ़ावा दिया।

  • प्रसिद्ध मंदिरों में विरुपाक्ष मंदिर (हम्पी), विट्ठल मंदिर और हज़ार राम मंदिर शामिल हैं।

  • शैव और वैष्णव धर्मों को संरक्षण दिया गया, लेकिन जैन और इस्लाम को भी सहिष्णुता दी गई।

(ख) कला और स्थापत्य

  • विजयनगर स्थापत्य शैली में द्रविड़ और नागर वास्तुकला का मिश्रण देखा जाता है।

  • विशाल गोपुरम (मंदिरों के प्रवेश द्वार), मूर्तिकला और स्तंभों की विस्तृत नक्काशी इसकी प्रमुख विशेषताएँ थीं।

(ग) साहित्य और भाषा

  • संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु और तमिल में साहित्य की रचना की गई।

  • इस काल में हरिहर, मल्लिनाथ और कुमार व्यास जैसे प्रसिद्ध कवि हुए।

  • शासकों ने विद्वानों को संरक्षण दिया और धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद कराया।


6. विजयनगर साम्राज्य का पतन और प्रभाव

(क) तालीकोटा की लड़ाई (1565)

  • 1565 में विजयनगर साम्राज्य और बिजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बीदर की संयुक्त मुस्लिम सेनाओं के बीच तालीकोटा का युद्ध हुआ।

  • इस युद्ध में विजयनगर को हार मिली, और राजधानी हम्पी को नष्ट कर दिया गया।

(ख) पतन के अन्य कारण

  • उत्तराधिकार संघर्षों और भ्रष्टाचार ने भी साम्राज्य को कमजोर किया।

  • धीरे-धीरे अरविदु वंश के अधीन विजयनगर शासन सीमित होता गया और अंततः 1646 में समाप्त हो गया।

7. निष्कर्ष

विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत में एक मजबूत प्रशासनिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आधार स्थापित किया। इसकी शासन प्रणाली अर्द्ध-केंद्रीकृत थी, और नायक प्रणाली के माध्यम से स्थानीय प्रशासन को संगठित किया गया। इसने व्यापार, कृषि, और कला को बढ़ावा दिया और हिंदू संस्कृति को पुनर्जीवित किया। हालाँकि तालीकोटा की लड़ाई के बाद इसका पतन हो गया, लेकिन इसकी सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत आज भी भारत की समृद्ध परंपरा का प्रतीक बनी हुई है।

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