15वीं शताब्दी में भारत के सामुद्रिक व्यापार का विवरण
(A Detailed Account of India’s Maritime Trade in the 15th Century)1. सामुद्रिक व्यापार के प्रमुख बंदरगाह
15वीं शताब्दी में भारत के विभिन्न क्षेत्रों के तटीय इलाकों में कई समृद्ध बंदरगाह थे:
(i) पश्चिमी तट के बंदरगाह:
(ii) पूर्वी तट के बंदरगाह:
2. प्रमुख व्यापारिक वस्तुएँ
भारत अपने समुद्री व्यापार के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्यात और आयात करता था:
निर्यात की प्रमुख वस्तुएँ:
- मसाले (काली मिर्च, इलायची, लौंग)
- सूती और रेशमी वस्त्र
- चावल, गेहूं, दालें
- कीमती पत्थर, मोती
- चीनी, गुड़, और इत्र
आयात की वस्तुएँ:
- घोड़े (मुख्यतः अरब और मध्य एशिया से)
- ऊन, काँच, धातु, और शराब
- विदेशी लकड़ी, सुगंधित तेल
- हथियार और नवाचारपूर्ण यंत्र
3. व्यापारिक समुदायों की भूमिका
(i) गुजराती व्यापारी:
गुजरात के बनिया, बोहरा और मुसलमान व्यापारी अरब देशों तक व्यापार करते थे। इनके द्वारा पश्चिम एशिया में भारतीय वस्त्रों की भारी माँग थी।
(ii) मलाबार व्यापारी:
यहाँ के मुस्लिम मप्पिला व्यापारी और नायर समुदाय समुद्री व्यापार में सक्रिय थे। कालीकट के ज़मोरिन ने इन्हें संरक्षण दिया था।
(iii) तमिल और तेलुगु व्यापारी:
ये व्यापारी दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार करते थे और नागापट्टनम तथा मछलीपट्टनम से जहाज भेजते थे।
(iv) अरब और फारसी व्यापारी:
4. तकनीकी और नौसैनिक प्रगति
- भारतीय समुद्री व्यापार उस समय विकसित जहाज निर्माण तकनीक पर आधारित था:
- बड़े व्यापारिक जहाज ‘धौ’ (Dhow) और ‘जंक’ (Junk) बनाए जाते थे।
- मानसून हवाओं की जानकारी के आधार पर यात्रा योजनाएँ बनाई जाती थीं।
- नेविगेशन के लिए खगोलीय ज्ञान और तारों की दिशा का उपयोग किया जाता था।
5. विदेशी संपर्क और पुर्तगालियों का आगमन
15वीं शताब्दी के अंत में 1498 ई. में वास्को-दा-गामा का कालीकट आगमन भारत के समुद्री व्यापार के इतिहास में बड़ा मोड़ था।
प्रभाव:
- पारंपरिक व्यापार मार्गों पर यूरोपीय नियंत्रण बढ़ने लगा।
- भारत के पारंपरिक अरब, फारसी और स्थानीय व्यापारियों को चुनौतियाँ मिलने लगीं।
- पुर्तगालियों ने गोवा, कालीकट, कोचीन जैसे बंदरगाहों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
6. व्यापार और संस्कृति
भारत के समुद्री व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रभावों का भी आदान-प्रदान हुआ:
- भारतीय वस्त्र और व्यंजन दक्षिण-पूर्व एशिया में लोकप्रिय हुए।
- हिंदू और बौद्ध धर्म का प्रचार समुद्री मार्गों से हुआ।
- दक्षिण भारत के चोल और पांड्य शासकों ने भी विदेशों में अपनी सांस्कृतिक छाप छोड़ी थी।
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