भारत एक ऐसा देश है जहाँ संतों, महापुरुषों और अवतारों की परंपरा रही है। इन्हीं में से एक हैं भगवान महावीर, जिनका जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रकाशस्तंभ हैं। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने न केवल आत्मसंयम और तप का मार्ग दिखाया बल्कि अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे सिद्धांतों को जीवन का आधार बनाया।
इस लेख में हम भगवान महावीर के जीवन, उनके दर्शन, उनके द्वारा स्थापित जैन धर्म के सिद्धांतों और उनके सामाजिक प्रभाव पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
भगवान महावीर का प्रारंभिक जीवन
भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व 599 में कुंडलपुर, वैशाली गणतंत्र के एक राजघराने में हुआ था वर्तमान बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बसाढ़ गाँव है वही उस समय का वैशाली था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। उन्हें बचपन में वर्धमान नाम से जाना जाता था, जो उनकी बहादुरी और वीरता का प्रतीक था। यही वर्द्धमान आगे चलकर स्वामी महावीर कहलायें। भगवान महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा गया है।
उनका पालन-पोषण एक राजकुमार की तरह हुआ, लेकिन बचपन से ही वे वैराग्य, ध्यान और आत्मचिंतन की ओर आकर्षित थे।
वर्द्धमान (भगवान महावीर) को सज्जंस एवं श्रेयांस, और जसस अर्थात यशस्वी भी कहा गया है। वे मूलतः ज्ञातृ वंश के थे तथा उनका गोत्र कश्यप था। भगवान महावीर के बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन तथा उनकी बहन का नाम सुदर्शना था। इनके बचपन के समय राजमहल में बीते। वे बचपन से ही अत्यंत निर्भीक और साहसी थे। जब वह आठ वर्ष के हुए तो उन्हें शिक्षा प्राप्त करने एवं युद्धकला में निपुण होने के लिए शिल्प शाला में भेजा गया था।
संसार से विरक्ति और दीक्षा
भगवान महावीर का जीवन केवल सांसारिक सुखों तक सीमित नहीं था। तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने राजपाट, परिवार और सांसारिक बंधनों को त्यागकर दीक्षा ली और वन की ओर चले गए। उन्होंने कठिन तप और आत्मसंयम के द्वारा 12 वर्षों तक कठोर साधना की और अंततः कैवल्य ज्ञान (मोक्ष) की प्राप्ति की।
उनकी साधना में ना केवल शरीर को वश में करना था, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरकर सत्य को जानना भी था।
भगवान महावीर की शिक्षाएँ
भगवान महावीर की शिक्षाएँ आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं। उनके पांच प्रमुख व्रत निम्नलिखित हैं:
1. अहिंसा (Non-violence)
"अहिंसा परमो धर्म:" महावीर स्वामी ने यह उपदेश दिया कि किसी भी प्राणी को मन, वचन और कर्म से हानि न पहुँचाना ही सबसे बड़ा धर्म है।
2. सत्य (Truth)
झूठ बोलना न केवल दूसरों को धोखा देता है बल्कि आत्मा को भी अशुद्ध करता है। महावीर का मानना था कि सत्य में ही मोक्ष का मार्ग है।
3. अचौर्य (Non-stealing)
किसी की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना लेना चोरी है और यह आत्मा को बंधन में डालता है। इसलिए अचौर्य का पालन आवश्यक है।
4. ब्रह्मचर्य (Celibacy)
इंद्रिय संयम और ब्रह्मचर्य आत्मानुशासन के लिए आवश्यक हैं। यह आत्मा को शुद्ध करने का मार्ग है।
5. अपरिग्रह (Non-possessiveness)
संपत्ति, रिश्ते और इच्छाओं का बंधन आत्मा की मुक्ति में बाधक है। भगवान महावीर ने जीवन में कम से कम भोग की बात कही।
भगवान महावीर का दर्शन
भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में "अनेकांतवाद" और "स्यातवाद" जैसे सिद्धांत दिए।
• अनेकांतवाद का अर्थ है कि सत्य एक नहीं बल्कि बहुआयामी हो सकता है।
• स्यातवाद का तात्पर्य है कि कोई भी कथन सापेक्ष हो सकता है, पूर्ण सत्य के लिए सभी दृष्टिकोणों को समझना आवश्यक है।
उनका दर्शन विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण और व्यवहारिक था।
जैन धर्म का विकास
भगवान महावीर ने जैन धर्म को संगठित रूप में लोगों के सामने रखा। उन्होंने श्रवणबेलगोला, पावापुरी, राजगृह और वैशाली जैसे अनेक क्षेत्रों में धर्म प्रचार किया। उनके शिष्यों में गणधर प्रमुख थे, जिन्होंने उनके उपदेशों को संकलित किया।
महावीर के बाद उनके अनुयायियों ने जैन धर्म को दो शाखाओं में बाँट दिया—
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दिगंबर – नग्न साधु, कठोर तप का पालन।
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श्वेतांबर – सफेद वस्त्र पहनने वाले, लचीली परंपरा।
समकालीन समाज में महावीर के उपदेशों की प्रासंगिकता
आज जब हिंसा, असहिष्णुता, लोभ और मोह चारों ओर फैले हैं, तब भगवान महावीर के उपदेश और दर्शन सामाजिक सुधार के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। उनके द्वारा दिए गए अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धांतों को अपनाकर हम न केवल स्वयं को बल्कि समाज को भी शांति और संतुलन की दिशा में ले जा सकते हैं।
भगवान महावीर और विश्व समुदाय
महावीर स्वामी के सिद्धांतों ने न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों को मजबूत किया है। आज जैन धर्म संयुक्त राष्ट्र और विश्व अहिंसा दिवस जैसे मंचों पर एक आदर्श के रूप में देखा जाता है।
महावीर जयंती का महत्व
हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को महावीर जयंती मनाई जाती है। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा, प्रवचन और अहिंसा यात्रा आयोजित होती है।
निष्कर्ष
भगवान महावीर का जीवन केवल एक धार्मिक अध्याय नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति है। उन्होंने अपने आचरण, विचार और उपदेशों से यह सिद्ध किया कि आत्मा की मुक्ति केवल संयम, तप और सच्चे मार्ग पर चलकर ही संभव है। उनका दर्शन आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना हजारों वर्ष पहले था।
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